एक अभिनव, पर्यावरण-हितैषी और किफायती समाधान एक प्राचीन भारतीय परंपरा से प्रेरित, यह अनूठा और नवीन उत्पाद घरों की दीवारों और फर्श को गाय के गोबर से • लेपित करने की सदियों पुरानी विधि को एक आधुनिक रूप में प्रस्तुत करता है। इस परंपरा को वैज्ञानिक रूप से संशोधित कर डिस्टेंपर और इमल्शन पेंट के रूप में विकसित किया गया है, जिसमें गाय का गोबर मुख्य कच्चा माल है। इस पेंट के आठ प्राकृतिक लाभ, जिन्हें "अष्ट लाभ" कहा जाता है, इसे खास और दीवारों के लिए एक आदर्श सुरक्षा कवच बनाते हैं। यह पेंट धोने योग्य, जलरोधी, टिकाऊ है और केवल 4 घंटे में सूख जाता है। यह BIS (भारतीय मानक ब्यूरो) के मानकों के अनुरूप है। खादी प्राकृतिक डिस्टेंपर और इमल्शन पेंट सफेद रंग के मैट फिनिश और शाइनिंग में उपलब्ध है, जिसे उचित रंग मिलाकर किसी भी मनचाहे रंग में बदला जा सकता है। इसे खादी आयोग ने किसानों की आय बढ़ाने, तकनीक के माध्यम से सतत रोजगार सृजन करने और आम जनता को किफायती दरों पर उच्च गुणवत्ता वाला पेंट प्रदान करने के उद्देश्य से विकसित किया है।
पहले मिट्टी के घर होते थे, जो घरों को ठंडा रखते थे, लेकिन अब जब मिट्टी के घर नहीं रहे, तो यह विशेष रुप से आधुनिक भवनों के लिए तैयार किया गया है ताकि अंदर के स्थानों को ठंडा और आरामदायक रखा जा सके। मानव समाज की प्रगति गाय और अन्य मवेशियों की प्रगति से जुड़ी हुई है। हमें आधुनिक अर्थव्यवस्था में गाय को फिर से जोड़ना होगा। सोचिए, हमारे पूर्वज गाय के गोबर से लेपे हुए घरों में क्यों रहते थे? गाय का गोबर सबसे सस्ता और उत्तम थर्मल इंसुलेटर है। इसमें मौजूद एंजाइम एक अच्छा बाइंडर (चिपकाने वाला तत्व) होते हैं। इसमें एंटीसेप्टिक गुण होते हैं और यह हानिकारक विकिरणों से बचाव करता है। यह प्लास्टर को नमी और लवणता से होने वाले नुकसान से भी बचाता है। रासायनिक पेंट से स्वास्थ्य को खतरा सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) द्वारा 2008 और 2009 में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि 72% से अधिक पेंट नमूनों में सीसे (लेड) की मात्रा BIS द्वारा निर्धारित सीमा से बहुत अधिक थी। भारत में पेंट कंपनियों को इन मानकों का पालन स्वैच्छिक रुप से करना होता है, जिससे यह अनिवार्य नियम बनने के बजाय मात्र एक औपचारिकता बनकर रह जाता है।
कई अध्ययनों से पता चला है कि पेंट में विषाक्त रसायन, विशेष रूप से सीसा (लेड), होता है, जो स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है। बच्चों में सीसे की मौजूदगी से।Q स्तर में कमी देखी गई है। CSE के अध्ययन के लगभग एक दशक बाद, 2017 में दिल्ली स्थित NGO टॉक्सिक लिंक द्वारा फिर से एक अध्ययन किया गया। इसमें पाया गया कि 73% से अधिक पेंट नमूनों में सीसे की मात्रा 90 ppm की निर्धारित सीमा से अधिक थी, जिससे स्पष्ट हुआ कि उद्योग जगत में इन मानकों के अनुपालन में कोई विशेष सुधार नहीं हुआ है। हालांकि कुछ बड़ी कंपनियों ने लेड-फ्री पेंट उपलब्ध कराना शुरु कर दिया है, लेकिन अधिकांश कंपनियां अभी भी हानिकारक सीसे वाले पेंट बेच रही हैं। इस समस्या को ध्यान में रखते हुए, खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) द्वारा विकसित यह प्राकृतिक पेंट रासायनिक पेंट के उपयोग को कम करने और उससे होने वाले स्वास्थ्य जोखिमों को रोकने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।